यूपी में दलित लड़की के साथ रेप और जलाने के मामले में सात लोगों के ख़िलाफ़ मामला

उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में एक नाबालिग़ दलित लड़की के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के मामले में पुलिस ने सात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर केअनुसार इन सातों पर आरोप हैं कि इन्होंने पहले 14 साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया और उसके बाद उसे जलाकर मार डाला.

हालांकि अभी तक इस मामले में किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है. पुलिस का कहना है कि पीड़िता के पिता की शिकायत के आधार पर एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है.

ख़बर केअनुसार, मृतक लड़की ईंट के भट्टे पर काम करती थी. ईंट भट्टे के मालिक और अन्य छह लोगों के खिलाफ़ केस दर्ज कर लिया गया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में अभी तक दाख़िले की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह यह रही कि सही वक्त पर एग्ज़ाम कराने के लिए एजेंसी तय नहीं हो सकी. पहले दाख़िले की तारीख़ 15 अप्रैल तय की गई थी, जिसके बाद इसे बढ़ाकर 20 मई किया गया फिर 24 मई और बाद में 27 मई भी. लेकिन अब यह तय हो गया हैकि एनटीए विश्वविद्यालय में चुनाव करवाएगी. नवभारत टाइम्स ने इस ख़बर को प्रकाशित किया है. अख़बार ने संभावना जताई है कि अब जबकि एनटीए का नाम तय हो गया है तो दो-तीन दिन के भीतर एडमिशन प्रोसेस शुरू हो सकता है.

बीते महीने राजस्थान के अलवर में एक रेप का वीडियो वायरल हुआ था. अब वह महिला राजस्थान पुलिस में बतौर कांस्टेबल नियुक्त हुई है. अशोक गहलोत कैबिनेट ने यह फ़ैसला दिया. हालांकि अभी तक पीड़िता को नियुक्ति पत्र नहीं मिला है. राज्य सरकार ने महिला को सरकारी नौकरी देने का एलान किया था. जिसके तहत महिला की नियुक्ति की जानी है. दैनिक जागरण ने इस ख़बर को प्रकाशित किया है.

इसके अलावा अख़बार ने कोलकाता की दो मस्जिदों के महिलाओं की नमाज़ के लिए खोले जाने की ख़बर को भी प्रमुखता से प्रकाशित किया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बर्नआउट को एक बीमारी माना है. बर्नआउट काम के अधिक बोझ से होने वाले स्ट्रेस को कहते हैं. जेनेवा में हुई वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में यह घोषणा की गई. संगठन ने इसे इंटरनेशल क्लासीफ़िकेशन डिज़ीज़ेज़ की लिस्ट में शामिल किया है. यह कामकाज से जुड़े लोगों को होने वाली बीमारी है. दैनिक भास्कर ने इस ख़बर को प्राथमिकता दी है.

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की छह में से तीन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी और तीन पर नेशनल कॉन्फ़्रेंस को जीत मिली है.

हिंदू बहुल जम्मू डिविज़न की दो सीटें (जम्मू और उधमपुर) और ग़ैर-मुस्लिम बहुल लद्दाख सीट बीजेपी की झोली में बरक़रार रही हैं जबकि मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी की अनंतनाग, बारामूला और श्रीनगर नेशनल कॉन्फ़्रेंस के खाते में गई है.

2014 लोकसभा चुनाव में तीन सीटें जीतने वाली पीडीपी इस बार वह एक भी सीट नहीं जीत पाई.

2008 के विधानसभा चुनावों से लेकर इस बार के लोकसभा चुनाव तक भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव जम्मू क्षेत्र में लगातार बढ़ा है. यह बात वोट प्रतिशत में भी देखने को मिलती है और सीटों की संख्या में भी.

बहुत से विश्लेषक जम्मू और लद्दाख में बढ़ते बीजेपी के इस प्रभाव के लिए कश्मीर के साथ बढ़ती खाई और ध्रुवीकरण को मुख्य वजह मानते हैं. उनका यह भी मानना है कि 2019 चुनाव के नतीजों में भी इसी क्षेत्रीय और धार्मिक विभाजन की झलक देखने को मिली है.

वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन कहती हैं कि 2014 में हुए संसदीय और फिर विधानसभा चुनावों में ही जम्मू और कश्मीर के बीच का क्षेत्रीय विभेद स्पष्ट हो गया था.

नवंबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने सबसे ज़्यादा 28 सीटें और फिर बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं.

बीजेपी जम्मू डिविज़न से ये सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी जबकि पीडीपी की अधिकांश सीटें घाटी से थी. इससे पहले उसी साल मई हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जम्मू, उधमपुर और लद्दाख की सीटों पर भी जीत हासिल की थी.

अनुराधा भसीन कहती हैं, "जम्मू में 2008 में हुए अमरनाथ भूमि विवाद के बाद से कम्यूनल राजनीति की करंसी कैश कर गई है. तबसे धीरे-धीरे विभाजनकारी राजनीति जम्मू क्षेत्र में पनप रही थी. उसी की नतीजा है कि जो बीजेपी जम्मू में कभी इतनी स्ट्रॉन्ग नहीं थी, जो मात्र पांच-छह सीटें यहां जीत पाती थी, उसने 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में 11 सीटें जीती थीं जो बड़ी बात थी."

वरिष्ठ पत्रकार अल्ताफ़ हुसैन कहते हैं कि जम्मू क्षेत्र कश्मीर के बीच हमेशा से खाई रही है और इसका अक्स चुनावों के परिणामों में भी देखने को मिलता है. जम्मू में किसी और पार्टी को ज़्यादा सीटें मिलती हैं और कश्मीर में किसी और को.

वह कहते है कि, "जम्मू क्षेत्र और कश्मीर के बीच में हमेशा से विभाजन रहा है. बस एक बार जब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ़्रेंस में गठबंधन हुआ था, तभी जम्मू के साथ-साथ कश्मीर में भी एक जैसा रुझान देखने को मिला था."

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