16वीं लोक सभा में मोदी का आख़िरी भाषण चुनावी भाषण ज़्यादा: नज़रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16वीं लोक सभा के अपने आख़िरी भाषण में ख़ास तौर पर कांग्रेस और गांधी परिवार के भ्रष्टाचार पर बात की.
इसके अलावा उन्होंने खुद और अपनी भारतीय जनता पार्टी को भारत का नैतिक संरक्षक बताया. उन्होंने ऐसे दिखाया कि देश का भला सिर्फ़ वही सोचते हैं.
रफ़ाल डील को लेकर विपक्ष के आरोपों पर जवाब देते हुए वो बचाव की मुद्रा में नज़र आए.
बजट में असंगठित क्षेत्र और मध्यमवर्ग के लोगों के लिए की गई घोषणाओं को लेकर वो काफ़ी उत्साह में बोल रहे थे.
हालांकि वो सबसे लिए नौकरियां पैदा करने और ख़ासकर कृषि के मुद्दों का बचाव करते दिखे. विपक्ष आगामी लोक सभा चुनाव के मुद्देनज़र इन्हीं मुद्दों को लेकर सत्ता पक्ष पर हमलावर है.
हालांकि वो किसानों की समस्या और नोटबंदी-जीएसटी से ग्रामीण और छोटे-मध्यम उद्योगों को हुए नुकसान पर सबसे आख़िर में बोले.
ऐसा लगा जैसे उनके पास इन मुद्दों पर बचाव में बोलने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं था या वो शर्मिंदा होने से बचना चाहते थे.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी की हार का बड़ा कारण नोटबंदी और जीएसटी था. मोदी सरकार की इन नीतियों का वहां की अर्थव्यवस्था पर काफ़ी बुरा असर पड़ा था.
लेकिन अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी इन नीतियों की बड़ाई की और ये मानने से भी इनकार किया कि ये नीतियां उनकी हार का कारण बनीं.
उल्टा उन्होंने कांग्रेस को ही आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वो किसानों की कर्ज़ माफ़ी के रूप में झूठे सपने बेच रही है. उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि कांग्रेस के राज में किसानों को फसल पर पहले से कम एमएसपी मिल रहा है.
मोदी ने तो यहां तक कहा कि दलालों की वजह से ये कर्ज़ माफ़ी घोटाला साबित होगी. उन्होंने कहा कि इस तरह की कर्ज़ माफ़ी के बजाए किसानों के लिए न्यूनतम आमदनी समर्थन योजना चलानी चाहिए, जैसा कि उन्होंने इस बार के केंद्रीय बजट में प्रावधान किया है.
मोदी का कहना था कि इस तरह की योजना ही किसानों की समस्या का हल हो सकती है, क्योंकि इसमें कोई बिचौलिया नहीं होगा, बल्कि पैसा सीधे किसानों के खाते में जाएगा.
यहां मोदी ये भूल गए कि छत्तीगढ़ में और कुछ हद तक राजस्थान में भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के कर्ज़ माफ़ीू के वादे ने ही पार्टी के पक्ष में काम किया. इससे कहीं ना कहीं ये देखा गया कि कर्ज़ माफ़ी इस तरह की शॉर्ट टर्म योजनाओं से ज़्यादा असरदार हैं.
उनका भाषण न्यू इंडिया की धारणा पर बुना हुआ था, जिसमें कई सारी उम्मीदें, आशाएं और संकल्प थे जो सभी तरह की चुनौतियों और भ्रष्टाचार का जवाब थे जिसे अगर समय पर ठीक नहीं किया गया तो वो दीमक की तरह सिस्टम को अंदर से खोखला कर देगा.
मोदी ने कुछ ऐसे ही भाषण 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान भी दिए थे. उनमें कांग्रेस और गांध-नेहरू परिवार केंद्र में थे.
मोदी ने हमेशा ही इस परिवार और भ्रष्टाचार को एक-दूसरे का पर्याय बताया. वो भूल रहे हैं कि आने वाली चुनावों में कांग्रेस को ही बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है.
समकालीन भारत के दो भागों बीसी और एडी को परिभाषित किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि महात्मा गांधी खुद "कांग्रेस मुक्त भारत" चाहते थे. उन्होंने आज़ादी के बाद कांग्रेस को भंग करने की वकालत की थी.
इसके अलावा उन्होंने खुद और अपनी भारतीय जनता पार्टी को भारत का नैतिक संरक्षक बताया. उन्होंने ऐसे दिखाया कि देश का भला सिर्फ़ वही सोचते हैं.
रफ़ाल डील को लेकर विपक्ष के आरोपों पर जवाब देते हुए वो बचाव की मुद्रा में नज़र आए.
बजट में असंगठित क्षेत्र और मध्यमवर्ग के लोगों के लिए की गई घोषणाओं को लेकर वो काफ़ी उत्साह में बोल रहे थे.
हालांकि वो सबसे लिए नौकरियां पैदा करने और ख़ासकर कृषि के मुद्दों का बचाव करते दिखे. विपक्ष आगामी लोक सभा चुनाव के मुद्देनज़र इन्हीं मुद्दों को लेकर सत्ता पक्ष पर हमलावर है.
हालांकि वो किसानों की समस्या और नोटबंदी-जीएसटी से ग्रामीण और छोटे-मध्यम उद्योगों को हुए नुकसान पर सबसे आख़िर में बोले.
ऐसा लगा जैसे उनके पास इन मुद्दों पर बचाव में बोलने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं था या वो शर्मिंदा होने से बचना चाहते थे.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी की हार का बड़ा कारण नोटबंदी और जीएसटी था. मोदी सरकार की इन नीतियों का वहां की अर्थव्यवस्था पर काफ़ी बुरा असर पड़ा था.
लेकिन अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी इन नीतियों की बड़ाई की और ये मानने से भी इनकार किया कि ये नीतियां उनकी हार का कारण बनीं.
उल्टा उन्होंने कांग्रेस को ही आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वो किसानों की कर्ज़ माफ़ी के रूप में झूठे सपने बेच रही है. उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि कांग्रेस के राज में किसानों को फसल पर पहले से कम एमएसपी मिल रहा है.
मोदी ने तो यहां तक कहा कि दलालों की वजह से ये कर्ज़ माफ़ी घोटाला साबित होगी. उन्होंने कहा कि इस तरह की कर्ज़ माफ़ी के बजाए किसानों के लिए न्यूनतम आमदनी समर्थन योजना चलानी चाहिए, जैसा कि उन्होंने इस बार के केंद्रीय बजट में प्रावधान किया है.
मोदी का कहना था कि इस तरह की योजना ही किसानों की समस्या का हल हो सकती है, क्योंकि इसमें कोई बिचौलिया नहीं होगा, बल्कि पैसा सीधे किसानों के खाते में जाएगा.
यहां मोदी ये भूल गए कि छत्तीगढ़ में और कुछ हद तक राजस्थान में भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के कर्ज़ माफ़ीू के वादे ने ही पार्टी के पक्ष में काम किया. इससे कहीं ना कहीं ये देखा गया कि कर्ज़ माफ़ी इस तरह की शॉर्ट टर्म योजनाओं से ज़्यादा असरदार हैं.
उनका भाषण न्यू इंडिया की धारणा पर बुना हुआ था, जिसमें कई सारी उम्मीदें, आशाएं और संकल्प थे जो सभी तरह की चुनौतियों और भ्रष्टाचार का जवाब थे जिसे अगर समय पर ठीक नहीं किया गया तो वो दीमक की तरह सिस्टम को अंदर से खोखला कर देगा.
मोदी ने कुछ ऐसे ही भाषण 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान भी दिए थे. उनमें कांग्रेस और गांध-नेहरू परिवार केंद्र में थे.
मोदी ने हमेशा ही इस परिवार और भ्रष्टाचार को एक-दूसरे का पर्याय बताया. वो भूल रहे हैं कि आने वाली चुनावों में कांग्रेस को ही बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है.
समकालीन भारत के दो भागों बीसी और एडी को परिभाषित किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि महात्मा गांधी खुद "कांग्रेस मुक्त भारत" चाहते थे. उन्होंने आज़ादी के बाद कांग्रेस को भंग करने की वकालत की थी.
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